आज यहां हम फ़ातिमा शेख़ की बात करेंगे क्योंकि 9 जनवरी यानी आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था । जब सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले को बच्चियों को पढ़ाने की वजह से सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा तब फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें सहारा दिया। फ़ातिमा शेख़ 1856 तक उन सभी स्कूलों में पढ़ाती रही जो उन्होंने फुले दंपत्ति के साथ मिलकर खोले थे लेकिन 1856 के बाद उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी हुई कहानियां लोगों को नहीं मिल पाई।
बता दें कि पुणे की रहने वाली फ़ातिमा शेख़ के भाई उस्मान शेख़ के घर में ही उनकी मदद से सावित्रीबाई फुले व फ़ातिमा शेख़ ने 1848 में पहला बालिकाओं के लिए स्कूल खोला था । इसी स्कूल में दोनों मिलकर पिछड़ी जातियों के बच्चों को तालीम देने का काम करते रहे । ये वो दौर था जब महिलाओं को तालीम से महरूम रखा जाता था और पिछड़ी जातियों पर तालीम के दरवाज़े बंद थे।
उस वक़्त के ऊंची जाति के सभी लोग इन लोगों के ख़िलाफ़ थे इनके कामों को रोकने के लिए उन्होंने भरपूर प्रयास किया ।सामाजिक अपमान करके और सामाजिक बहिष्कार करके उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई । ऊंची जाति के लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की । उन्होंने फ़ातिमा और सावित्रीबाई पर पथराव किया और गाय का गोबर भी फेंका । लेकिन फ़ातिमा शेख़ दृढ़ता से खड़े होकर हर संभव तरीक़े से सावित्रीबाई फुले का समर्थन किया।
यानी हम कह सकते हैं कि आज से क़रीब 172 साल पहले फ़ातिमा शेख़ एक भारतीय महिला शिक्षिका थीं, जिन्होंने अपनी दोस्त सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं की तालीम की नीव डाली थी।
आपको बता दें कि जब फुले दंपत्ति को उनके घर से निकाला गया तब फ़ातिमा शेख़ के भाई उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में रखा । उस्मान शेख़ ने फुले दंपत्ति को अपने घर की पेशकश की और 1848 में उसी घर के परिसर में एक स्कूल खोला गया । उस स्कूल का नाम Indigenous library था । वह दोनों महिलाएं उस समय के उच्च जाति के हिंदुओं के साथ-साथ रूढ़िवादी मुसलमानों के ख़िलाफ़ भी काम कर रही थीं।
फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया । सावित्रीबाई और फ़ातिमा, सगुना बाई भी साथ थीं, जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेता बन गईं । फ़ातिमा शेख़ के भाई उस्मान शेख़ भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे और इन्होंने हर तरह इनका साथ दिया।
इन लोगों ने मिलकर पांच स्कूल खोलें वैसे फ़ातिमा के बारे में इतिहास में कम जानकारी मिलती है फ़ातिमा के भाई के अलावा उनके जीवन में किसी पुरुष का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, जिससे यह भी कहा जा सकता है शायद उन्होंने विवाह नहीं किया था और अपना सारा जीवन समाज सुधार और महिला शिक्षा में लगा दिया । जो इस तथ्य का संकेत है कि उनका जीवन 19वीं शताब्दी के जीवन की पितृसत्ता और रूढ़िवादी के ख़िलाफ़ एक मज़बूत आवाज़ थी।
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